Add To collaction

एक रात

दरवाज़े पर दस्तक हुई। लालाजी ने दरवाजा खोला। सामने एक व्यक्ति लालटेन लिए खडा था, "चलिए लालाजी सब आपका इंतजार कर रहे हैं।"


लालाजी ने पनही पहनी, छड़ी उठाई और
उस आदमी के पीछे-पीछे चल दिए।

वह व्यक्ति आगे आगे लालटेन लेकर चलता रहा लालाजी उसके पीछे पीछे। चलते चलते वे एक स्थान पर पहुंचे जहां पर काफी चहल-पहल थी फर्स बिछा हुआ था फर्स पर कई लोग बैठे हुए थे चारों तरफ इत्र की खुशबू महक रही थी। सोंधी सोंधी मिट्टी की सुगंध आ रही थी, क्योंकि मिट्टी पर ताजा-ताजा छिड़काव किया गया था। सभी लोग आपस में खुसुर-पुसुर करके आनंदित हो रहे थे। लालाजी वहां पहुंच गए तो उन्हें एक स्थान पर बैठने के लिए इशारा किया, जहां पर ढोलक रखी हुई थी। लालाजी ने पनहीं उतारी और ढोलक के पास जाकर बैठ गए। ढोलक उन्होंने हाथ में ली और मस्त होकर ढोलक पर थाप मारने लगे। सभी लोग उनकी ढोलक पर झूमने लगे। नाचने-गाने लगे। लालाजी लगातार मस्त होकर अपनी धुन में ढोलक बजाते रहे। ढोलक बजाते-बजाते अचानक उनकी नज़र नाचते हुए व्यक्तियों पर गई। उन्होंने देखा जो व्यक्ति नाच रहे थे उनके पैर पीछे की तरफ थे!! लालाजी समझ गए कि मैं भूत और जिन के चक्कर में पड़ गया हूं फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। अपने डर पर काबू रखा क्योंकि अगर वह डर कर ढोलक बजाना बंद कर देते तो उनके आनंद में खलल पड़ जाता इससे नाराज होकर जिन और भूत लाला जी को कष्ट पहुंचा सकते थे या उनकी जान ले सकते थे इसलिए लालाजी अपनी घबराहट को छिपा कर लगातार ढोलक बजाते रहे। उन्होंने रात 12:00 बजे से लेकर सुबह 4:00 बजे तक धुआंधार ढोलक बजाई। जिन और भूत उनकी ढोलक की थाप से मस्त हो गए, बहुत खुश हुए। उनकी बहुत प्रसंशा की। 4:00 बजे भूतों के सरदार ने उसी भूत से कहा लालाजी को उनके घर छोड़ आओ। चलिए लालाजी हम आपको घर छोड़ दें। उन्होंने एक पोटली में कुछ सिक्के रखकर लाला जी को भेंट स्वरूप दिए। लाला जी ने पोटली हाथ में ली और उस भूत के पीछे पीछे चल दिए। वह भूत लाला जी को घर के दरवाजे तक छोड़कर गायब हो गया। लाला जी ने घर के अंदर प्रवेश किया और गश खाकर वहीं देहरी पर गिर पड़े। घर के सब लोग लालाजी के पास इकट्ठे हो गए, उनके चेहरे पर पानी के छींटे डाले। लालाजी को होश आया तो उन्होंने अपनी आपबीती घरवालों को सुनाई। उसके पश्चात लालाजी 2 दिन तक बुखार में तपते रहे और बड़बड़ाते रहे। 2 दिन पश्चात उनका बुखार उतरा और वह स्वस्थ हुए। घर वालों को भी थोड़ी राहत महसूस हुई। जब लाला जी ठीक हो गए तो घर वालों ने चैन की सांस ली। अचानक लालाजी को भेंट स्वरूप दी गई पोटली का ध्यान आया। उन्होंने पोटली को खोला। पोटली खुलते ही सबकी आंखें चमक गईं क्योंकि पोटली में 11 चमचमाते हुए सोने के सिक्के थे। लाला जी और घरवालों को भरोसा ही नहीं हुआ कि यह सोना हो सकता है। लालाजी एक सिक्का लेकर सुनार की दुकान पर पहुँचे सिक्के की परख कराई। सिक्का खालिस सोने का था। 
लाला जी के तो दिन फिर गए। उन्होंने जिन और भूतों को तहेदिल से धन्यवाद दिया!

बात उस दौर की है जब बिजली का नामो निशान नहीं था। लोग राह चलते हुए लालटेन का उपयोग करते थे। 
कमलनाथ सिन्हा जिन्हें सब लाला जी कहते थे। बहुत अच्छी ढोलक बजाते थे। 
उनकी ढोलक के चर्चे दूर-दूर तक प्रसिद्ध थे। भजन संध्या में लोग उन्हें अक्सर बुला कर ले जाते थे। उनकी ढोलक की थाप पर श्रोता वाह-वाह करके झूम उठते थे। मस्त होकर नाचते-गाते!!

लाला जी भी कोई भी बुलाने आ जाए बिना कुछ पूछे उसके पीछे चल देते थे!!

एक दिन खाना खा-पीकर वह सो गए। कुछ देर बाद उनके दरवाजे पर दस्तक हुई।
लालाजी ने दरवाजा खोला। सामने एक व्यक्ति लालटेन लिए खडा था, "चलिए लालाजी सब आपका इंतजार कर रहे हैं!!"

लाला जी उसके पीछे-पीछे चल दिए!!!

स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान)


   19
7 Comments

Mohammed urooj khan

24-Oct-2023 11:57 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

Reply

RISHITA

29-Sep-2023 07:14 AM

Awesome

Reply

madhura

19-Aug-2023 07:08 AM

nice

Reply